रिर्पोट – दीपक कुमार
वर्तमान कलयुग में, जब पाप कर्म और असाध्य रोगों से पीड़ित लोग डॉक्टरों की मदद के बाद भी राहत नहीं पा पाते, तब वे साधु-संतों की शरण में जाते हैं। लेकिन वहां से भी उन्हें यही जवाब मिलता है कि ये आपके पिछले जन्म के पाप कर्म हैं, जिन्हें भोगना ही पड़ेगा। आज के इस वर्तमान कलयुगी दौर में अब तक जितने भी ऋषि-महर्षि, साधु-महात्मा और संत आदि जो भी हुए उनका मानना भी है कि किए गए पाप कर्म के फल को नहीं काटा जा सकता है।
इसी विषय को लेकर रविवार को बिहार के विभिन्न जिलों जैसे पटना, सुपौल, सीवान, अरवल, औरंगाबाद, बेगूसराय, भोजपुर, जमुई, कैमूर, मधेपुरा, नवादा, शेखपुरा, और सीतामढ़ी में संत रामपाल जी महाराज जी का आध्यामिक सत्संग का आयोजन हुआ। जिसमें संत जी ने अपने सत्संग प्रवचन में बताए कि तत्वदर्शी संत के सत्संग सुनने और उनके द्वारा बताए गए शास्त्रानुकूल भक्ति करने से हमारे प्रारब्ध कर्म यानी पिछले जन्म के पाप कर्म समाप्त हो जाता है। जिसका प्रमाण हमारे धार्मिक ग्रंथ ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 161 मंत्र 2, 5, सुक्त 162 मंत्र 5, सुक्त 163 मंत्र 1-3 में है कि यदि रोगी की जीवन शक्ति नष्ट हो गई हो और रोगी मृत्यु के समीप पहुंच गया हो तो भी परमात्मा कविर्देव जी उसको स्वस्थ्य करके सौ वर्ष की सुखमय आयु प्रदान करते हैं। इसीलिए सच्चे सतगुरु यानी तत्वदर्शी संत की शरण लेकर उनके द्वारा बताए गई शास्त्रानुकूल भक्ति करनी चाहिए।
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