देवब्रत मंडल
देश में चुनाव का माहौल है। इस चुनाव के माहौल के ही बीच पिछले दिनों प्रिंट मीडिया में दो खबरें देखी गई। वैसे तो अखबार में ढेरों खबर प्रकाशित किए गए थे लेकिन दो खबर कुछ हट के समाज की ‘सुचिता’ से जुड़ी थी। आपको बता दें कि सुचिता का मतलब अच्छा चित्र, सुंदर, पवित्र, शुभ, सूचित, समझदार होता है। यहां सुचिता का हमारा मतलब समझदार से है। समझदार से ही समझदारी शब्द बना है जो समझदार शब्द का क्रियाविशेषण है।
अब चलते हैं खबर की तरफ
खबर क्या थी आपको स्मरण करा दूं(अखबार की कटिंग यहां लगी हुई है)। एक अखबार में भ्रष्टाचार से से जुड़ी खबर है तो दूसरी नशा से जुड़ी है। ये दोनों (नशा और भ्रष्टाचार) देश को खोखला कर रहा है। इन दोनों बुराइयों के कारण किसी भी देश को बर्बाद होने से कोई रोक सकता है। रोक सकता है तो वो है हमारा समाज। प्रशासन और सरकार के भरोसे इन दोनों को जड़ से समाप्त करने के लिए यदि थोड़ी देर के लिए ठहर भी जाते हैं तो हम सभी देख रहे हैं कि प्रशासन और सरकार की लाख कोशिशें अब तक नाकाम ही रही है। इसके लिए किसी को प्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेदार ठहराया नहीं जा सकता है। कारण स्पष्ट है कि इसी समाज ने सरकार बनाई है और सरकार ने कानून। इसलिए मूल में जाएं तो सीधे तौर पर हमारा समाज ही प्रथम दृष्टया में जिम्मेदार है।
अच्छे लोग और बुरे लोग से उलझना नहीं चाहते
जिसमें हम, आप, हमारे द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि, प्रशासन और सरकार भी शामिल हैं। हम आप कहीं भी निवास करते हैं, वहां एक समाज है। अच्छे(समाज और देश की चिंता करने वाले)और बुरे(अनैतिक कार्य में लिप्त लोग) दोनों लोग इसी समाज में रहते हैं। ऐसा माहौल हर मोहल्ले में देखने व सुनने को मिल जाएंगे। अच्छे लोग बुरे लोगों से उलझना नहीं चाहते हैं। जिसे बुरे लोग उनकी कमजोरी समझते हैं। नतीजा बुरे लोग मनमानी करने के आदि हो चुके हैं। अच्छे लोग प्रशासन से बेहतरी और सहयोग की उम्मीद भी उतना नहीं करते जितना कि प्रशासन ऐसे(अच्छे) लोगों से उम्मीद करते हैं। कारण कइएक हैं इसके। जिसका जिक्र यहां नहीं कर सकते क्योंकि बात ही कुछ ऐसी है। अच्छे लोगों में तो इसकी चर्चा खूब होती है लेकिन बात आगे निकल कर नहीं आती है।
खबर गया शहर के युवा पीढ़ी से और शहरी गरीब और जरूरतमंद लोगों से जुड़ी हुई है। इन अखबारों के संवाददाता ने अपनी कलम की स्याही को ‘काला’ नहीं होने दिया। हिम्मत जुताई और लिख कर समाज, प्रशासन और सरकार को बता दिया कि दो लाख रुपए की आवास योजना के लिए एक आम आदमी को क्या क्या नहीं सहना पड़ता है। महंगाई के इस दौर में दो लाख रुपए से किसी का घर नहीं बन पाएगा। सरकार भी जानती है और आवास योजना के लाभुक भी। फिर भी सरकार की योजना का लाभ(दो लाख रुपए) लेने वाले को इसके लिए यदि बीच में घुस देना पड़ता है तो समझने की बात है कि कितना बचेगा लाभुक के पास की उसे एक छत नसीब हो सके। मांगता क्यों और कौन है और देता लेता क्यों और कौन है। ये सब सच सामने लाने में संवाददाता में तनिक भी हिचके नहीं। कलम के धनी और इनकी हिम्मत को दाद देनी होगी। आखिर देखें तो इस पूरे प्रकरण में समाज ही तो है। इस समाज के लोग चाहे दायित्व जो निभा रहे हों। आखिर हैं तो सभी इसी समाज के हिस्से।
एक दूसरी खबर ड्रग्स की आई। ड्रग्स हमारे समाज और देश के युवा पीढ़ी को जकड़ लिया है। तभी तो इतने बड़े पैमाने पर इसका हर दिन लाखों करोड़ों का कारोबार फल फूल रहा है। इसकी रोकथाम को लेकर ही संवाददाता ने अपनी कलम की स्याही अखबार के पन्ने पर उढेल दिया। ताकि समाज देखे और समझे कि आखिर देश की भावी पीढ़ी किस प्रकार बर्बाद हो रही है।
देश के युवा केवल वोट बैंक नहीं
जिस युवा पीढ़ी पर देश को नाज है और नेता इन्हीं के भरोसे राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। नशे के गिरफ्त आए हुए युवाओं के परिवार के लोगों से मिलने की जरूरत है। इनसे मिलने के बाद पता चलता है कि वे भी अब लाचार होते जा रहे हैं। इनका कहना है कि ड्रग्स पकड़ा जाना, अवैध शराब कारोबारी पकड़ा जाना, नशापान की हालत में पकड़ा जाना और न्यायिक प्रक्रिया के तहत दंडित किया जाना ही इसका सार्थक निदान नहीं हो सकता है।
इन सभी बुराइयों को जड़ से समाप्त करने के लिए समाज के हर तबके के लोगों को आगे आना होगा। क्योंकि जिस समाज की बात है तो इसमें हम, आप, जनप्रतिनिधि, प्रशासन, सरकार सभी समाहित हैं। सभी लोगों को देश को बर्बाद होने से बचाने के लिए, देश को एक बेहतर भविष्य देने के लिए, बर्बाद हो रहे युवाओं को बचाने के लिए निःस्वार्थ भाव और एक मजबूत संकल्प के साथ एकसाथ आगे आना होगा। वरना दुनियां आज भी चल रही है, कल भी कायम थी और कल भी कायम रहेगी।
संपादक की कलम से